abour भाग 3 मौलिक अधिकार/ मूलअधिकार अनुच्छेद 12 से 35निवारक निरोध /Preventine Ditensionरिट /Writ subject polity for 10th/12th/ssc/railway/other exma.

Subject- Polity 

भाग (03)- मौलिक अधिकार / मूलअधिकार ( अनुच्छेद 12 से 35)-



वैसा अधिकार मूलअधिकार कहलाता है जो हमे जन्म से ही प्राप्त हो जाता है। यह अधिकार जिवन जिने के लिए अनिवार्य है। इसे कभी समाप्त नहीं किया जा सकता हैं किन्तु कुछ समय के लिए रोका जा सकता है। 
मूलअधिकार पर रोक राष्ट्रपति लगाते है। मूलअधिकार का रक्षक सर्वोच्च न्यायालय को कहा जाता है। 
मूलअधिकार USA के संविधान से लिया गया है। मूल अधिकार की मांग फ्रांस क्रांति के बाद उत्पन हुआ। 


अनुच्छेद 12 - इसमें मूल अधिकार की परिभाषा दी गई हैं। 

अनुच्छेद 13 - अल्पीकरण की चर्चा है अथार्त मूल अधिकार पर कुछ समय के लिए रोक लगाया जा सकता है। 

अनुच्छेद 14 - विधि के समक्ष समन्ता की चर्चा है अथार्त कानून की नजर में प्रत्येक ब्यक्ति समान है। 
विधि के समक्ष समन्ता शब्द ब्रिटेन से लिया गया है। कानून का समन्ता सरक्षन शब्द USA के संविधान से लिया गया है। 

अनुच्छेद 15 - जाति, धर्म, लिंग या जन्म के स्थान के आधार पर भेद-भाव की रोक की चर्चा हैं। 

अनुच्छेद 16 - लोक नियोजन की समन्ता अथार्त सरकारी नौकरी में सभी को बराबर का अधिकार है। 
संविधान प्रारम्भ होते समय 10 वर्षो के लिए आरक्षन की चर्चा थी। 

अनुच्छेद 17 - अस्पृशयता का अंत अथार्त छुआ-छुत पर रोक लगाया गया। 

अनुच्छेद 18 - उपाधियों का अंत अथार्त अब हम सर, केशरी-हिन्द, नाइडहुड, लॉड आदि जैसी उपाधि नहीं रख सकते है किन्तु शिक्षा तथा सेना से जुड़ी उपाधि रख सकते है। जैसे- Dr. , Prof. , Eng. , मेजर आदि। 

भारत रत्न जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार को हम रख सकते है किन्तु किसी विदेशी देश द्वारा समान लेने से पहले हमे राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होती है। जैसे- मोराजी देसाई को भारत के सर्वोच्च समान भारत रत्न के साथ-साथ पाकिस्तान का सर्वोच्च समान निसान-ए-पाकिस्तान भी प्राप्त हुआ था। 

अनुच्छेद 19 - इसमें विभिंन प्रकार की स्वतंत्रता है- 

A) इसमें अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता है अथार्त बोलने की स्वतंत्रता है। 
इसी में पुतला जलाना, RTI ( Right To Information) तथा प्रेस की स्वतंत्रता है। 
नोट- भारत में RTI 2005 में आया। 

B) बिना हथियार के सभा करने की स्वतंत्रता है। 

C) संघ अथार्त संगठन बनाने की स्वतंत्रता है। 

D) भारत के चारो ओर भ्रमण करने की स्वतंत्रता है। 

E) भारत के किसी भी राज्य में निवास होने की स्वतंत्रता है। 

F) सम्पति का अधिकार। 
वर्तमान में सम्पति का अधिकार मूल अधिकार नहीं रहा। अब यह एक क़ानूनी अधिकार बन गया अथार्त सरकार अब हमारी सम्पति ले सकती है। 

G) व्यवसाय करने की स्वतंत्रता। 


अनुच्छेद 20 - इसके अनुसार किसी अपराधी को अपराध के समय के कानून के अनुसार सजा दी जाती है न की उसके पहले या बाद के कानून के अनुसार। एक गलती के लिए किसी को एक ही सजा दी जा सकती है। 
अपराध सिद्ध होने के बाद भी दोषी को सरक्षन देना होता है। 
इसी अनुच्छेद के तहत अजमल कसाब को सरक्षन दिया जा रहा था। 

अनुच्छेद 21 - इसके तहत प्राण  एव दैहिक ( शरीरिक ) स्वतंत्रता है अथार्त किसी व्यक्ति से जिने का अधिकार नहीं छिना जा सकता है। 

अनुच्छेद 21 (क)- इसमें शिक्षा का अधिकार को मूल अधिकार बना दिया गया है और कहा गया है की 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चो को निशुल्क शिक्षा दी जायगी।  इसे 86वा संसोधन (2002) द्वारा जोड़ा गया।  
1 अप्रैल 2010 से निशुल्क शिक्षा प्रदान करना प्रारम्भ कर दिया गया। 

नोट- अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 पर राष्ट्रपति कभी भी रोक नहीं लगा सकते है। 

अनुच्छेद 22 - इसमें गिरफ़्तारी से सरक्षन की चर्चा है और तीन प्रकार की स्वतंत्रता दी गई है। 

1) गिरफ़्तार करने से पहले व्यक्ति को गिरफ़्तारी का कारण (वारंट) दिखाना होगा। 

2) गिरफ़्तार व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर स-शरीर न्ययालय में प्रस्तुत करना होता है किन्तु इस समय में यातायात तथा अवकाश का समय या दिन शामिल नहीं रहता है। 

3) गिरफ़्तार व्यक्ति को अपने पसंद का वकील रखने की स्वतंत्रता रहती हैं। 

नोट- शत्रु देश के नागरिक तथा निवारक निरोध अधिनियम के तहत पकड़े गए व्यक्ति को अनुच्छेद 22 की कोई भी स्वतंत्रता नहीं दी जाती है। 

निवारक निरोध (Preventine Ditension)-
इसकी चर्चा अनुच्छेद 22 (4) में है।  इसके तहत किसी व्यक्ति को पुलिस शक के आधार पर गिरफ़्तार कर सकती है। 
इसका उदेश्य किसी व्यक्ति को सजा दिलाना नहीं है बल्कि उसे अपराध करने से रोकना होता है। इसके तहत पुलिस किसी व्यक्ति को बिना आरोपपत्र (Charge Sheet) के ही तीन महीने गिरफ़्तार या नजर बंद कर सकती है। 

नोट- नजर बंद करने का अर्थ होता है किसी व्यक्ति को जेल में या उसी के घर में बंद कर के लोगो से उसका सम्पर्क तोर दिया जाता है। 

कुछ प्रमुख निवारक निरोध अधिनियम -

1) निवारक निरोध अधिनियम 1950 - यह भारत का पहला निवारक निरोध अधिनियम था। इसका उदेश्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भारत की प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य से रोकना था। यह 1951 में समाप्त होने वाला था किन्तु इसे 1971 को समाप्त हुआ। 

2) आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Mentance of Internal Security of Act, MISA)- 
यह 1971 में प्रारम्भ हुआ। 44 वे संशोधन (1979) इसके प्रतिकूल था और इस कारण 1979 में यह समाप्त हो गया। 

3) विदेशी मुद्रा संरक्षन व तस्करी निरोध अधिनियम (Conservation of foren exchange & Prevention of Smugling Act, COFEPOSA)- यह 1974 में बना और अभी तक लागु है। पहले इसमें तस्कारो के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष था जिसे 1984 को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष कर दिया गया है। 

4) रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून)- यह 1980 में लाया गया और अभी तक चालू है। यह खतरनाक/जगणं अपराध पर लगाया जाता है। 
इसके तहत एनकाउंटर का भी आदेश जारी किया जाता है। 

5) आंतकवादी एव विध्वंसकारी गतिविधिया निरोधक कानून (Terreist & Distructive Activity, TADA)- यह 1985 में प्रारम्भ हुआ किन्तु 1995 में समाप्त कर दिया गया। यह अब तक का सबसे खतनाक कानून था। 

6) आंतकबाद निरोध अधिनियम (Prevention of Terrorism Act, POTA)- इसे 2001 में लाया गया।  2002 में इसका नाम POTO (Prevention of Terrorism Ordinance) से POTA कर दिया गया किन्तु इसे 2004 में समाप्त कर दिया गया। 


अनुच्छेद 23 - इसमें बलात श्रम (जबरदस्ती कार्य) तथा बेगारी (मुप्त में काम) पर रोक लगाया गया है। 

नोट- जरूरत परने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। 

अनुच्छेद 24 - इसमें 14 वर्ष के कम वाले बच्चो को किसी कारखानों तथा खतरनाक काम में लगाने से रोका गया है। 

अनुच्छेद 25 - इसमें अन्तः करण की चर्चा है अथार्त हम कोई भी धर्म अपना सकते है। 
इसी के तहत मुसलमानो को टोपी पहने, सीखो को कृपण (तलवार) रखने की स्वतंत्रता हैं। 

अनुच्छेद 26 - इसमें धार्मिक कार्यो की प्रबंध की व्यवस्था है। सरकार किसी भी धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी। 

नोट- अनुच्छेद 25 में व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता है जबकि अनुच्छेद 26 में सामूहिक स्वतंत्रता है। 

अनुच्छेद 27 - धार्मिक कार्यो के लिए संचित (इकठा) धन कर (Tax) से मुक्त रहेगा। 

अनुच्छेद 28 - सरकारी धन से चल रही शिक्षण संस्था में कोई भी धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायगी किन्तु यदि किसी संस्था का सरकार केवल प्रशासन देख रही है उसे धन नहीं दे रही है तो वैसे संस्थो में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है। 

नोट- धर्म निरपेक्ष का अर्थ होता है राष्ट्र का अपना कोई धर्म नहीं हैं। 

अनुच्छेद 29 - इसमें अल्पसंख्यको के संरक्षन की चर्चा है और कहा गया है कि किसी भी वर्ग के व्यक्ति को अपने भाषा तथा लिपि के संरक्षन का अधिकार है। उसे भाषा के आधार पर किसी शिक्षन संस्था से नहीं निकाला जायगा। 

नोट- भारत में अल्पसंख्यक धर्म के आधार पर होते है जबकि आरक्षण जाति के आधार पर दिया जाता है। 
जैसे- धर्म में - हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई :  जाति में- ब्रहमण, राजपुत्र, पठान आदि। 

अनुच्छेद 30 - इसमें कहा गया है की कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग आपना शिक्षण संस्था खोल सकता है। सरकार उसे धन देने में कोई भेद-भाव नहीं करेगी। 

अनुच्छेद 31 - इसमें सम्पति का अधिकार था, जिसे 44वा संशोधन 1978 द्वारा यहां से हटाकर 300(क) में भेज दिया गया है। अतः अब सम्पति का अधिकार मूल अधिकार नहीं रहा अब यह क़ानूनी एव विधि का अधिकार रहा है। 

अनुच्छेद 32 - संवैधानिक उपचारो के अधिकार को Dr. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है। 
➤इसके तहत कोई व्यक्ति मूल अधिकार के हनन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है और सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद (22) के तहत 5 रिट (Writ)/वार्निग  जारी करती है---

1) बंदी प्रत्यक्षिकरण (Hobeus corpus)- यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण रिट है। 

इसके द्वारा न्यायालय बंदी बनाने वाले अधिकारी को यह आदेश देती है की बंदी व्यक्ति को उसके समक्ष प्रस्तुत करे ताकि न्यायलय बंदी बनाये जाने वाले कारणों को जाँच सके। 

2) परमादेश (Mandamus)- इसका अर्थ होता है, हम आदेश देते है।  
इसके द्वारा न्यायलय किसी पदाधिकारी को अपने कर्तब्य का पालन करने का निर्देश देती है। 

3) अधिकार पृच्छा (Quo-warranto)- यह न्यायालय किसी पदा-अधिकारी पर जारी करती है। यह तब जारी किया जाता है जब कोई व्यक्ति अपने अधिकार से बढ़कर कार्य करने लगता है। 

4) प्रतिषेद (Prohibition)- यह सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायलयों तथा अर्ध्द न्यालिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कारवाही न करे, क्योकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। इसके द्वारा निम्न या अर्द्ध-न्यायिक न्यायालयों के कारवाही को तत्काल रोक दिया जाता हैं। 

5) उत्प्रेषण (Certiorari)/सर्जियोरि - प्रतिशेद तथा उत्प्रेषण दोनों ही ऊपरी न्यायालय निचली न्यायालय पर जारी करती है। 
यह तब जारी किया जाता है जब निचली न्यायालय अपने अधिकारों का उल्ल्घन कर के फैसला सुना चुकी होती है। इसके जारी करने के बाद निचली न्यायालय का फैसला रद कर दिया जाता है और मामला ऊपरी न्यायालय में चला जाता है। 

नोट-सर्वोच्च न्यायालय (S.C) मूल अधिकार से संबंधित रिट (Writ) अनुच्छेद 32 के तहत निकलती है जबकि मूल अधिकार के आलावे अन्य मामले में अनुच्छेद 139 के तहत रिट निकालती है। 
उच्च न्यायालय (H.C) मूल अधिकार तथा अन्य मामला दोनों से  संबंधित रिट अनुच्छेद 226 के तहत निकालती है। 

नोट- अनुच्छेद 32 को मूल अधिकार को मूल अधिकार बनाने वाला को मूल अधिकार कहा जाता है। 
अनिवार्य रोजगार तथा अनिवार्य निवास प्राप्त करना हमारा मूल अधिकार नहीं है। 
चक्का जाम करना तथा हरताल करना हमारा मूल अधिकार नहीं है। क्योकि इस दौरान किसी अन्य व्यक्ति का मूल अधिकार का हनन हो जाता है। 

अनुच्छेद 33 - इसके द्वारा सुरक्षा बल, गुप्तचर तथा दूरसंचार विभाग के कर्मचारियों के मूल अधिकारों को राष्ट्र हित्य के लिए निलंबित कर दिया जाता है। 

अनुच्छेद 34 - सेना का कानून (Marshal Law) को संसद किसी भी क्षेत्र में लागु कर सकती है। 

अनुच्छेद 35 - भाग तीन (03) के सभी अनुच्छेद को प्रावधानों को लागु करने का चर्चा अनुच्छेद 35 में है। 


➨समानता का अधिकार - अनुच्छेद 14 से 18 तक है। 
स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद 19 से 22 तक है। 
शोषण के विरुद्ध अधिकार - अनुच्छेद 23 से 24 तक है। 
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार - अनुच्छेद 25 से 28 तक है। 
शिक्षा एव संस्कृति का अधिकार - अनुच्छेद 29 से 30 तक है। 
संवैधानिक उपचार - अनुच्छेद 32 . 


नोट- अनुच्छेद 15, 16, 19, 29, 30 ये केवल भारतीयों को ही प्राप्त रहते है। 


By Kumar

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